तुम आज भी मेरे साथ जमा हो, लतिका….. पिछले छप्पन वर्षों से….. निरंतर गुणा होती हुई …… खूब धुंधुयाती आग में अपनी गंध देती हुई….. या फिर घने धुंए से निकल भागी….. मेरे निकट बहुत निकट, अपने पूर्ण,पूर्व आकार में…..