दाहिने हाथ

  • 294
  • 75

              मकान को देखते ही उस रात भी मेरा मुंह लटक गया।             मकान के तीनों दरवाज़े मुंह बाए खड़े रहते।             सीढ़ियां चढ़ते ही टपकते नल वाले गुसलखाने का विकृत वह पहला दरवाज़ा मुझे सामने पा कर अपना मुंह फुला लेता ।             अस्त- व्यस्त बर्तनों की पृष्ठभूमि में हांफ़ रही विदीर्ण मां के चेहरे के साथ संतप्त वह दूसरा दरवाज़ा मेरे कदमों की आहट पाते ही मेरा मुंह ताकता ।             और