गिरकर भि जितने वाला (गाँव की मिट्टि और सपने )

  • 210
  • 66

अध्याय 1 : गाँव की मिट्टी और सपनेसुबह के पाँच बजे थे। गाँव की गलियों में अभी भी हल्की-हल्की धुंध फैली हुई थी। मिट्टी की सोंधी खुशबू हवा में घुली थी। दूर से बैलों की घंटियों की आवाज़ आ रही थी। खेतों में हल चलाने वाले किसान दिन की शुरुआत कर चुके थे।राजु की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। उसका कमरा साधारण था – मिट्टी की दीवारें, फूस की छत और कोने में रखा हुआ पुराना लकड़ी का चौकी। छत से झूलती एक लालटेन टिमटिमा रही थी। यही लालटेन रात में उसकी सबसे बड़ी साथी थी।उसकी माँ ने धीरे से दरवाज़ा खोला