जीवोपनिषद भाग 3 — प्रस्तावना भाग 1 ने पहले प्रश्न उठाए। भाग 2 ने उन प्रश्नों को और गहरा किया।इच्छा, ज्ञान, प्रेम, असंतुलन, धर्म, शिक्षा, पुनर्जन्म —हर जगह केवल अधूरापन दिखाई दिया।हर उत्तर टूट गया,हर उपाय शून्य साबित हुआ। अब भाग 3 की शुरुआत है।यहाँ यात्रा अलग है —यहाँ प्रश्न नहीं,बल्कि निचोड़ प्रकट होंगे।यहाँ उत्तर भी है और मौन भी। --- भाग 3 का स्वर यह अंतिम धारा है,जहाँ मनुष्य हार मानकर शून्य में समर्पित होता है। जहाँ भोजन केवल शरीर का आहार नहीं,आत्मा का प्रसाद बन जाता है। जहाँ श्वास केवल हवा नहीं,देवता का साक्षात्कार है। जहाँ जीवन कोई संघर्ष नहीं,बल्कि साधना है। --- निचोड़ अब सत्य छुपा नहीं रहेगा।यहाँ