ईश्वर और आत्मा से मानव कैसे दूर हुआ

प्रस्तावना   मानव का जन्म ईश्वर और आत्मा से अलग नहीं था। वह उसी ऊर्जा, उसी चेतना की अभिव्यक्ति था। लेकिन धीरे-धीरे उसने “मार्ग” बनाए, गुरु और शास्त्र ने उपाय थोपे, धर्म ने कर्म को काट दिया, और मानव अपनी ही सहजता से दूर होता गया।   वह “मैं” और “मेरा” में उलझ गया। उसने दूसरों का मार्ग पकड़ा, अपने स्वभाव को छोड़ा। उसने कर्म छोड़कर पुण्य का सौदा किया। और यहीं से उसकी दूरी शुरू हुई— ईश्वर और आत्मा से।   अध्याय 1 — मार्ग थोपे जाते हैं   धर्म और गुरु अक्सर यह कहते हैं — “अपनाओ, तपस्या