ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 3

मेले की घटना के बाद अर्जुन का मन और अधिक दृढ़ हो गया था। उसे अब समझ आने लगा था कि ब्रह्मचर्य का मार्ग केवल किताबों का ज्ञान नहीं, बल्कि हर रोज़ के प्रलोभनों में अपने आप पर विजय पाने का नाम है।फिर भी उसके भीतर एक प्रश्न बार-बार उठता –“क्या मैं अकेले इस मार्ग पर चल पाऊँगा? मेरी शक्ति कितनी है? क्या यह संकल्प जीवन भर निभाया जा सकता है?”इन्हीं उलझनों के बीच एक सुबह वह गुरुजी स्वामी वेदानंद के आश्रम पहुँच गया। सूरज अभी निकला ही था। ओस की बूँदें घास पर चमक रही थीं, चिड़ियों का कलरव