लेखक का दृष्टिकोण अर्जुन की अलार्म घड़ी की तेज़ घंटी ने पूरे अपार्टमेंट में गूंज पैदा कर दी।वह कराहते हुए अपनी आंखें मलने लगा, रात की अधूरी थकान अब भी उसके शरीर पर बोझ बनी हुई थी।ऊपर पंखा आलस भरे अंदाज़ में घूम रहा था, जबकि अर्जुन खुद को घसीटते हुए बिस्तर से बाहर निकला।आज का दिन बाकी दिनों से कहीं ज़्यादा भारी लग रहा था।शायद मेज़ पर रखा अधूरा गाना इसकी वजह था — जो उसे ऐसे चिढ़ा रहा था, जैसे कोई अधूरी कसम।जैसे ही उसने अपने फ़ोन की ओर हाथ बढ़ाया, स्क्रीन जगमगा उठी — इनकमिंग कॉल: माँ।उसके होंठों