समन्वय के साथ खुले स्मृति --- गवाक्ष ======================= स्नेहिल नमस्कार मित्रो साहित्यालोक का नाम सामने आते ही न जाने कितनी कितनी स्मृतियाँ जुड़ने लगती हैं । कभी ऐसा भी होता है कि वे स्मृतियाँ एक काफ़ी पुरानी रील की भाँति मस्तिष्क के कोनों में से निकल ठीक मध्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगती हैं और हम उन्हें पुरानी फिल्म की ऐसी बंद रील की तरह आँखें गड़ाए देखते रहते हैं जो न जाने कब से डिब्बे में बंद हो और उसका प्रिन्ट खराब हो गया हो लेकिन मन उसे देखे बिना नहीं मानता, आँखें पूरी तरह भी न