प्रकाशक की सहमति मिलने के बाद का समय अनन्या के लिए एक सपने जैसा था। 'चंद्रकांता' की पांडुलिपि को छपने के लिए तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हुई। हस्तलिखित पन्नों को टाइप करना, संपादन करना, और आवरण डिजाइन करना - हर चरण एक नया रोमांच लेकर आया।एक दिन, संपादन के दौरान अनन्या को उपन्यास का एक प्रमुख अंश मिला, जहाँ चंद्रकांता कहती है - "मैं वह नहीं बन सकती, जो दुनिया मुझे बनाना चाहती है। मैं वह बनूंगी, जो मैं हूँ। चाहे इसकी कीमत अकेलापन ही क्यों न हो।" इन पंक्तियों को पढ़कर अनन्या की आँखें नम हो गईं। उसे