लेखक – विजय शर्मा एरीगाँव बेलपुर में हर कोई रघु को जानता था। कभी वही रघु सबका चहेता, हँसमुख और मददगार लड़का था। लेकिन अब उसका नाम सुनते ही लोग सहम जाते। गाँव में लोग फुसफुसाते—“रघु बदल गया है… उसका मन ज़हर से भर चुका है।”पहला अध्याय – टूटा भरोसारघु अपने घर की टूटी खाट पर बैठा गुस्से में सोच रहा था।माँ ने आवाज़ दी—“बेटा, खाना तैयार है। चल थाली में बैठ जा।”रघु झल्लाकर बोला—“माँ, मेरा मन नहीं है। छोड़ो ये सब।”माँ ने समझाया—“बेटा, भूखा रहकर गुस्से को बढ़ा मत। गुस्सा आग की तरह है। तू जल जाएगा।”रघु ने कटु