ज़िंदगी कभी-कभी इतनी उलझ जाती है कि इंसान को खुद पर ही भरोसा नहीं रहता। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। नौकरी में संतोष नहीं था, घर की हालत भी अच्छी नहीं थी, और हर दिन एक नया बोझ सा लगता था। माँ की तबीयत लंबे समय से खराब थी, उनकी दवा और इलाज में जितना भी पैसा था, सब खर्च हो चुका था। ऐसे में मैं खुद को बिल्कुल टूटा हुआ महसूस करता था। कई बार तो लगता कि जीने की कोई वजह ही नहीं बची है।ऐसे दिनों में मेरा सहारा था मेरा दोस्त—रितोन। हर शनिवार