धरती फट गई — और उस गहरी खाई से निकली वह काली परछाई अब पूरी तरह आकार ले चुकी थी। उसका कोई चेहरा नहीं था, सिर्फ़ भीतर का घना अंधकार और सैकड़ों सालों का कड़वाहट भरा गूँज. आवाज़ धीमी पर खून जमा देने वाली निकली —“अजय! तूने अपने हिस्से स्वीकार कर लिए… पर याद रहना — मैं वही अंधकार हूँ जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने दबा दिया था। अब तुझे असली युद्ध लड़ना होगा।”अजय की हथेली में जो तलवार अब चमक रही थी, वह अब सिर्फ़ हथियार न रही — उस पर समय और सूर्य-चंद्र के निशान खुदे थे। पर तलवार