एक रात के बादखिड़की से ठंडी हवा और बारिश की बूंदें अंदर आ रही थीं। बूंदों की नमी जब आरोही के चेहरे को छूकर गुजरती, तो जैसे उसके मन की उलझनों को और गहरा कर देतीं। वह गुमसुम खड़ी थी, मानो बारिश की हर बूंद उसके अंदर के सवालों को और कुरेद रही हो।“आरोही, तुम्हें सर्दी लग जाएगी।”पीछे से माँ की आवाज़ आई। आवाज़ इतनी परिचित और कोमल थी कि आरोही की सोचों का सिलसिला टूट गया।“माँ, मैं बस बारिश देख रही थी,” आरोही ने धीमे स्वर में कहा।इतने में उसका फोन बज उठा। स्क्रीन पर एक नाम फ्लैश हो