अधूरे सपनों की चादर - 12

अध्याय 12 – छोटी-छोटी खुशियाँ और सपनों की परछाइयाँजीवन की सबसे मीठी यादें अक्सर वही होती हैं जिन्हें हम बचपन में बहुत साधारण मानते हैं। तनु के लिए भी उसका बचपन रोज़मर्रा की उन्हीं छोटी-छोटी बातों से भरा हुआ था, जो आज भी दिल को मुस्कुराने पर मजबूर करती हैं।--- गांव  की गली का छोले-कुलचे वालागली में अक्सर एक भैया आता था। उसके कंधे पर पीतल का बड़ा-सा कनस्तर और हाथ में लोहे की ट्रॉली होती थी। कनस्तर खोलते ही उसमें से भाप उठती और छोले की खुशबू पूरे मोहल्ले में फैल जाती।भैया ज़ोर से आवाज़ लगाता—“गरमा-गरम छोले-कुलचे…!”जैसे ही यह आवाज़