अधूरे सपनों की चादर - 11

अध्याय 11 – मासूमियत से आत्मबोध की ओरस्कूल की दीवारें सिर्फ पढ़ाई की जगह नहीं थीं, बल्कि तनु के लिए नए-नए अनुभवों का संसार भी थीं। अब वह सातवीं कक्षा में थी और उम्र भी उस मोड़ पर थी जहाँ बचपन धीरे-धीरे किशोरावस्था की ओर बढ़ने लगता है।---बाउंड्री के पास का अनुभवएक दिन लंच टाइम में वह स्कूल की बाउंड्री के पास खेल रही थी। हँसी-ठिठोली चल रही थी कि तभी अचानक पास के बॉयज़ स्कूल का कोई लड़का दीवार पर चढ़ गया।उसने मुस्कुराते हुए कहा—“अरे… बिलोरी ...गेंद पकड़ ले!”तनु ठिठक गई। पहली बार उसने किसी को अपनी आँखों के