सुबह की ठंडी हवा थी। मैं बगीचे में धीरे-धीरे टहल रहा था। मन में एक प्रश्न बार-बार उठ रहा था—“क्या हम इंसान भावनाओं के बहाव में बह जाते हैं और तर्क को भूल जाते हैं? या फिर तर्क की कठोरता में इतने उलझ जाते हैं कि भावनाओं की मिठास खो बैठते हैं?” यह सवाल मुझे भीतर तक परेशान कर रहा था।इसी सोच में खोया हुआ मैं अचानक ठिठक गया। एक हवा का झोंका आया और ऊँचे पेड़ से एक पीली पत्ती टूटकर धीरे-धीरे नीचे उतर आई। मैंने देखा कि वह पत्ती हवा के साथ नाच रही थी, जैसे कोई नन्हीं