इलाहाबाद से लौटकर अनन्या का मन एक तूफान की तरह उथल-पुथल में था। सुभद्रा की रहस्यमय बातें उसके कानों में गूंज रही थीं: "शायद तुम्हारी दादी को ही वह डायरी सौंपी गई थी... पांडुलिपि किसी गुप्त स्थान पर छिपी है।"अनन्या ने दादी की डायरी फिर से उठाई। अब यह महज कागजों का पुलिंदा नहीं, बल्कि एक रहस्यमय संदूक थी, जो इतिहास का राज खोलने को बेताब था। उसने हर पन्ने को उलटा, हर कोने को टटोला, हर दाग पर उंगलियाँ फेरीं। कहीं कोई गुप्त जेब? कोई चिपका पन्ना? घंटों की खोज में निराशा हावी होने लगी। तभी उसकी नजर चमड़े