त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 12

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पिछली बार:अनिरुद्ध ने अपनी अंदर की शक्ति को पहचान कर छाया के स्वामी को पराजित कर दिया।लेकिन उसने समझ लिया कि अंधकार सिर्फ बाहर नहीं, हर मन में छिपा होता है।अब असली लड़ाई उसके सामने है — खुद को और अपने वंश को बचाना।नई शुरुआतकिले का वातावरण बदल चुका था।जहाँ पहले काले धुएँ ने सब कुछ घेर रखा था, अब वहाँ नरम सुनहरी रोशनी फैली थी।दीवारों पर बने जले निशान धीरे-धीरे मिटते गए।जंगल में चिड़ियों की आवाजें फिर सुनाई देने लगीं।अद्रिका ने मुस्कुराकर कहा,"देख अनिरुद्ध… सब कुछ नया हो सकता है, अगर मन की रोशनी बुझने न पाए।अब तेरा काम