सफेद दाढ़ी की परछाई

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सर्दियों की काली रात थी। घड़ी की सुइयाँ बारह बजने का इशारा कर चुकी थीं। पूरा घर नींद में डूबा था, बस बाहर से आती ठंडी हवा खिड़कियों को हिला रही थी। कमरे की दीवार पर बल्ब की हल्की टिमटिमाती रोशनी अजीब-सी छाया बना रही थी।मैंने करवट बदली, लेकिन नींद जैसे रूठ गई थी। तभी अचानक वॉशरूम जाने की ज़रूरत महसूस हुई। मन में एक अजीब झिझक थी, लेकिन हिम्मत करके दरवाज़ा खोला और बाहर निकली।जैसे ही मेरी नज़र आँगन पर पड़ी… मैं जम गई।पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर कोई बैठा था। सफेद कपड़े, सफेद लंबी दाढ़ी… और चेहरे पर