अधूरे सपनों की चादर - 6

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--अध्याय ६सुबह का समय था। सूरज की हल्की-हल्की रोशनी गाँव की कच्ची गलियों में फैल चुकी थी।बाबूजी की ड्यूटी का समय सुबह सात बजे तय था। वे सरकारी दफ़्तर में काम करते थे और रोज़ सुबह अपने पुराने लेकिन मज़बूत साइकिल पर दफ़्तर जाते।तनु को बाबूजी की साइकिल की सवारी बहुत प्रिय थी।साइकिल के आगे के हैंडल पर वह बैठ जाती और रास्ते भर खुशी से गुनगुनाती रहती।गाँव की तंग गलियों से गुज़रते हुए उसकी हँसी और साइकिल की घंटी एक साथ गूँजतीं।बाबूजी जब दफ़्तर के रास्ते निकलते तो तनु को हमेशा बाबा जी के घर के आगे उतार देते।वहीं