अधूरे सपनों की चादर - 5

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अध्याय 5– घर के आँगन की किलकारियाँघर के बाहर एक लंबी कतार में कीकर के पेड़ खड़े थे। उनकी टेढ़ी-मेढ़ी डालियाँ, काँटों से भरी टहनियाँ और हल्की-सी पीली-हरी छाँव बचपन के खेलों की साथी थीं। भाइयों का सबसे बड़ा शौक उन्हीं पर चढ़कर जंगली फल तोड़ना था। सुबह से लेकर शाम तक उनका यही काम—कभी डाल पर लटक जाना, कभी काँटों से बचते हुए टोकरी भर लेना। माँ और बाबूजी का जी घबराता था कि कहीं कोई गिर न पड़े। घर के ठीक सामने ही एक नाला बहता था। पेड़ों पर झूलते बच्चों को देखकर सबको यही डर रहता कि