प्यार का इम्तहान

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  नज़रें इनायत हो रही थी, सारी बातें आँखों आँखों में ही हो रही थी। किसी को भी इश्क की भनक लगने की किसी भी प्रकार की गुंजाइश नहीं थी, ऐसा तो काव्या और गौरव समझ रहे थे। इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छीपता। आँखें अगर छुपा लेती हैं तो आँखें ब्यां भी करती है। अगले ही पल काव्या की आँखें बेसब्री के तीरों से भर आई थी, और इधर-उधर कुछ ढुंढ रही थी तो एक छोटी सी बच्ची ने कहा ’’ काव्या दीदी, गौरव भइया बाल्कनी में अपने दोस्तों से बातें कर रहे हेैं। ’’ काव्या उस छोटी बच्ची