अमवा के पेड़ के मुंडेर पर बैठी कोयलिया ’’ कुहू- कुहू ’’ की आवाज से गीत गा रही थी। किस फुनगी पर बैठी थी इसका पता स्पष्ट रूप से नहीं चल रहा था।नीचे नदी का पानी कल-कल बह कर मधुर राग उत्पन्न कर रही थी। नदी किनारे अमवा के पेड़ के नीचे युगल प्रेमी नेत्र की स्पष्ट भाषा में वार्तालाप कर रहे थे। ऐसा भी नहीं था कि इन दोनों का मिलना रोज ही नसीब होता था। यह मिलन तो पुरे 10 दिनों के बाद हुआ था और उन दोनों के पास कल के लिए बहुत कुछ था। कोई