दीया और तूफान

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बचपन से ही मीरा की आँखों में सपनों का समंदर था। छोटे-से कस्बे में जन्मी मीरा अक्सर आँगन में बैठकर आसमान को ताकती और सोचती—“क्या लड़कियों के सपनों की कोई सीमा होती है?” उसकी माँ मुस्कुरा कर कहतीं—“बिटिया, तेरे सपनों की कोई दीवार नहीं है, बस हिम्मत चाहिए।”परंतु समाज की सोच अलग थी। गाँव में यह धारणा थी कि लड़की का जीवन घर-गृहस्थी तक सीमित है। पढ़ाई पूरी होते ही विवाह, और विवाह के बाद पति-पति का घर। मीरा के सपनों को कई बार लोगों ने “अनावश्यक उड़ान” कहकर तोड़ा। लेकिन उसके पिता ने उसे पढ़ाया, संबल दिया।मीरा पढ़ाई में