उस दिन दसवीं कक्षा का मेरा आखिरी पर्चा खत्म हुआ था और मैं दोपहर की गाड़ी से मां के पास कस्बापुर वापिस जा रहा था। पिछले महीने से मां और मैं संग- संग न रहे थे। अपनी टाएफ़ड के कारण कस्बापुर के अपने स्कूल से अपना दाखिला भेजने में मैं असमर्थ रहा था और मेरा एक साल बचाने की खातिर लखनऊ में रह रहे मेरे पिता ने एक स्वतंत्र परीक्षार्थी के रूप में मेरा दाखिला लखनऊ से भर दिया था। फलस्वरूप अपनी परीक्षाओं के दौरान मैं अपने पिता के पास इधर लखनऊ आने के लिए बाध्य रहा था। “तुम्हारी मां