भारी मन से तृप्ति रिक्शे से उतरी, रेलवे स्टेशन सामने ही था। रिक्शे वाले को पैसे चुकाकर उसने अपना सामान उठाया और स्टेशन की और चल पड़ी। अभी वो दस कदम भी नहीं चल पायी थी की अनायास उसकी निगाहे सड़क की बायीं और एक पान की दुकान पर पड़ी। आसपास की तक़रीबन सारी दुकाने बंद थी बस यही एक पान की दुकान चालू थी। उस ने देखा वहा कुछ मनचले खड़े खड़े उसे ही घूर रहे थे। उनकी और ना देखते हुए तृप्ति ने निगाहे नीची रखकर पहले साड़ी के पल्लू को व्यवस्थित किया फिर तुरंत सामान उठाकर बगैर