प्रस्तावना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल यही है कि उसने जीवन को केवल दौड़, संघर्ष और संग्रह का नाम मान लिया है।वह सुबह से रात तक भागता है, पर कभी ठहरकर यह नहीं देखता कि जीवन है क्या।उसकी आँखें अतीत की स्मृतियों में और भविष्य की चिंताओं में उलझी रहती हैं,जबकि सत्य केवल वर्तमान के मौन क्षण में घटता है।धर्म, जो आत्मा का आहार था, वह भी बाहरी प्रदर्शन में बदल गया है।मंदिर, पूजा, नमाज़ और प्रवचन अब आत्मिक साधना नहीं,बल्कि समाज और संस्था का व्यवसाय बन गए हैं।यही कारण है कि धर्म की जड़ सूख रही है, और