उस घर से एक किलोमीटर की दूरी पर , मंदिर में हरिकीर्तन हो रहा था । गर्मी का समय था और शाम के वक्त रह - रहकर पछुआ हवा के झोके उठ रहे थे । जब हवा का कोई तेज झोका चलता तो उसके साथ हरिकीर्तन की स्पष्ट आवाज उस घर तक भी पहुंच जाती । वह अस्सी वर्षीय वृद्ध था । उसकी याददाश्त बेहद कमजोर पड़ गई थी । इस वक्त वह लॉन में कुर्सी पर बैठकर , अपने - आप में खोया हुआ शायद शाम का नजारा देख रहा था । बगल की कुर्सी पर उसका जवान बेटा कोई किताब