अधूरे सपनों की चादर - 4

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अध्याय 4तनु अभी छोटी ही थी, मगर माँ ने रसोई की पूरी ज़िम्मेदारी उसके कंधों पर डाल दी थी। जैसे ही सूरज ढलता और घर में सब बच्चे खेलने के लिए बाहर निकलते, तनु को आँगन छोड़कर रसोई की चौखट पर बैठ जाना पड़ता। चूल्हे की आँच, धुएँ की जलन और आँसुओं से भरी आँखें उसके बचपन का हिस्सा बन गई थीं। उसके भी मन में खेलकूद की चाह होती, मगर माँ कहतीं—"पहले काम निपटाओ, फिर खेलना।"तनु के छोटे-छोटे हाथ रोटियाँ बेलते, लकड़ियाँ जलाते और सब्ज़ी काटते थक जाते। बाहर से आती बच्चों की हँसी की आवाज़ उसके कानों में