अध्याय 3 भय का आतंकबचपन का वह समय तनु के लिए किसी अनजाने बोझ की तरह था। घर की चारदीवारी उसके लिए कभी सुरक्षित पनाहगाह नहीं लगी, बल्कि जैसे किसी घने साए से ढकी हुई जगह थी। आँगन की धूप भी उसे पूरी तरह उजली नहीं लगती थी। लगता था जैसे दीवारों के बीच कोई अदृश्य साया हर वक्त घूम रहा हो— ऐसा साया जिसे सिर्फ वह महसूस कर पाती थी।यह केवल कल्पना भर नहीं थी, बल्कि घर का भारी वातावरण ही उसकी मासूम चेतना को बार-बार कुरेदता था। जब भी बड़ा भाई घर में होता, तनु को लगता मानो