त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 10

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पिछली बार:अनिरुद्ध ने पहली बार अपने असली शत्रु — छाया का स्वामी का सामना किया।उसने जाना कि उसका पूरा जीवन, उसकी तकलीफ़ें, यहाँ तक कि उसके भीतर की शक्ति भी… सब छाया की योजना का हिस्सा थे।अब युद्ध अवश्यंभावी था।---युद्धभूमि का रूपकिला काँपने लगा।दीवारों से काली लहरें उठीं और पूरा कक्ष एक अंधेरी भूलभुलैया में बदल गया।छाया का स्वामी गरजा,"अनिरुद्ध! ये तेरी कब्र बनेगी।तेरी आत्मा मेरी शक्ति को अनंत बना देगी।"अनिरुद्ध ने सुनहरी तलवार उठाई।उसकी आँखों में डर की जगह एक अजीब-सी चमक थी।"तेरी छाया कितनी भी गहरी हो…मैं रोशनी की चिंगारी हूँ।और चिंगारी ही आग भड़काने के लिए काफी