रात का समय था। शहर की गलियों में एक सन्नाटा पसरा हुआ था, और सड़कों पर दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। प्रीति, जो अभी-अभी अपने काम से लौट रही थी, जल्दी से अपने कदम बढ़ा रही थी। उसके मन में एक अजीब सा डर था, लेकिन वह खुद को यह सोचकर ढांढस बंधा रही थी कि उसके पास अभी कुछ ही दूरी पर उसका घर है। जैसे ही वह मोड़ से मुड़ी, उसे अपने पीछे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। उसने पलटकर देखा तो उसकी आँखें भय से फैल गईं। पीछे से एक अनजान