अध्याय 2 – बचपन की गलियाँ और भीतर की कसकगाँव में थोड़ी ही दूरी पर बाबूजी के चाचा का घर था। सब उन्हें बड़े स्नेह से बाबा जी कहते थे। उनके परिवार में दो बुआ और दो चाचा थे, और सभी एक ही आँगन में रहते थे। घरों के बीच ज़्यादा दीवारें नहीं थीं, पर दिलों के बीच तो बिल्कुल भी नहीं।दिन में दो-तीन बार आना-जाना आम था। कोई दाल उबाल रही होती तो कटोरी लेकर दूसरी ओर भेज दी जाती, कोई नया पकवान बनता तो बच्चों को दौड़ाकर दे दिया जाता। शाम होते ही बाबूजी अक्सर बाबा जी के