“एक पीढ़ी पेड़ लगाती है और दूसरी उस की छाया पाती है,” अपनी बैठक में कुंती की मां, परमीता, के साथ अपनी बातचीत मैं ने इस लोकोक्ति से आरंभ की। कुंती की पृष्ठभूमि की सामग्री एकत्रित करने के अन्तर्गत। अपनी पुस्तक ‘किशोरी कुंज’ की ‘प्रतिभासंपन्न’ किशोरियों में कुंती भी उन में से एक थी। “पेड़ लगाना हम झाड़- झंखाड़ के नसीब में नहीं,” परमीता का चेहरा इतना दुबला था कि उस के दांत उस के मुंह से बड़े दिखाई दे रहे थे, “हम झाड़ अपने पीछे बस झाड़ ही छोड़ कर जाते हैं। बिना जड़ के। बिना तने के।बिना फूल-