माया और मनुष्य

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पेज 1प्रस्तावना : दो छोर, एक ही खालीपनआज का मनुष्य दो विपरीत दिशाओं में दौड़ रहा है—एक ओर वह भोग, धन और साधनों की ओर आकर्षित है, दूसरी ओर त्याग, धर्म और संन्यास की ओर भाग रहा है।लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि चाहे वह किसी भी दिशा में जाए, उसके भीतर का खालीपन नहीं भरता।भोगी को भोग में संतोष नहीं, संन्यासी को सत्य की अनुभूति नहीं।धनवान धन से संतुष्ट नहीं, और धर्मगुरु भीड़ और संस्था में उलझा है।स्त्री के पास सौंदर्य है, लेकिन वह भी प्रेम के बजाय प्रतिष्ठा और सुरक्षा की माया में उलझ गई है।यह सब