चरित्रहीन ही सही मां तो हूं न।---–---------------------–--------सुबह के आठ बज गये थे,नींद तो टूट गयी थी,पर विस्तर छोडने में आलस आ रहा था, मैने करवट बदली तो बरामदे में पिंजरे में टंगा तोता चिल्ला उठा "उठ जा बेटा,आज तेरा एक्जाम है। ", मैं मुस्कुरा उठा, " ये तोते भी बडे नकलची होते हैं,कल तक मैं अपने बेटे को इनही लफ्ज़ों में उठाता था।" कल ही उसकी 12वीं की परीक्षा खत्म हुयी है,और वह अपनी मां के साथ शामवाली गाडी से नाना से मिलने गया है। उन दोनो के लौटने में कमसे कम आठ दिन तो लगेंगे ही। सोचकर मन उदाश