जो कहा नहीं गया - 8

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जो कहा नहीं गया – भाग 8(छाया का नाम)स्थान: काशी, तुलसी घाटसमय: अगले दिन, सातवाँ प्रहररिया पूरी रात सो नहीं पाई। "सुबह सातवें प्रहर लौटना" — यह वाक्य उसके कानों में गूंजता रहा।गंगा किनारे के एक छोटे धर्मशाला के कमरे में वह बैठी डायरी के पुराने पन्ने पलटती रही, लेकिन कोई नया शब्द उभरकर सामने नहीं आया। ताबीज तो संगम में खो चुका था, पर उसका बोझ जैसे अब भी उसकी हथेली में महसूस हो रहा था।सूरज की पहली किरण घाट पर गिरी, तो वह सीधा "मौन सीढ़ियों" की ओर बढ़ी। रास्ता वैसा ही था — सुनसान, धूल और सीलन