ललित - The Master of Thikri - 4

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          ललित का मन अंदर ही अंदर सुलग रहा था। उसके विचार बेकाबू होकर अजीब-अजीब शक्लें लेने लगे।          "सब कुछ बर्बाद कर दूंगा। किसी को भी नहीं छोड़ूंगा। जहाँ भी जाऊँगा, वहाँ बस मेरा ही राज होगा। किसी की बात नहीं सुनूंगा। हर किसी की चुगली करूंगा। क्योंकि बिना चुगली किए मुझे चैन नहीं मिलता। जब तक यहाँ की बात वहाँ तक नहीं पहुँचती, मेरा कलेजा मुँह को आता है। मेरे दिल को राहत नहीं मिलती। मैं बावन बावन हो जाता हूँ... बावन बावन हो जाता हूँ मैं।"