Chapter 4"माँ...............!"ऋषि अचानक ज़ोर से चिल्ला कर उठ बैठा।उसके माथे पर पसीना था और सांस तेज़ चल रही थी। कुछ क्षणों तक वह हांफता रहा, फिर खुद से बुदबुदाया—"एक और नई सुबह... फिर वही सपना। आखिर ये कब तक चलेगा?"आज पूरे सोलह साल हो चुके थे जब उसने अपनी माँ को खोया था। लेकिन इन सोलह सालों में ऐसा कोई दिन नहीं गया जब यह सपना उसकी नींद में दस्तक न देता हो। यह सपना कभी एक धीमी फुसफुसाहट की तरह आता, तो कभी किसी गूंजते हुए शोर की तरह उसकी आत्मा को झकझोर देता। बचपन में वह इसी डर