राजस्थान के एक छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था – आरव। उसका बचपन बाकी बच्चों जैसा नहीं था। परिवार बहुत गरीब था, पिता खेतिहर मज़दूर और माँ सिलाई करके घर चलाती थीं। अक्सर घर में दो वक्त का खाना भी मुश्किल से मिलता था।गाँव के लोग कहते –“पढ़-लिखकर क्या करेगा? आखिरकार खेत ही जोतने हैं।”लेकिन आरव के सपने खेत की मिट्टी से कहीं आगे तक जाते थे। वह आसमान को देखता और सोचता कि एक दिन उसका नाम पूरे भारत में चमकेगा।गाँव का स्कूल टूटा-फूटा था। बच्चों के पास किताबें नहीं, स्लेट नहीं, सिर्फ चंद टाट-पट्टी। फिर भी