[5]येला ने दस निमिष कहा था किन्तु उससे भी पाँच निमिष पूर्व प्रार्थना कक्ष भर गया। सभी के मन में एक समान आशंका थी यह सब को विदित था किन्तु कोई अपने मुख से उसे प्रकट नहीं करना चाहता था। “क्या यह शिल्प शाला अब बंद हो जाएगी?’ इसी प्रश्न का उत्तर जानने के लिए प्रत्येक व्यक्ति उत्सुक था, चिंतित था। येला ने एक दृष्टि प्रार्थना खंड में उपस्थित सभी व्यक्तियों पर डाली। वह संतुष हो गई कि कोई भी अनुपस्थित नहीं था। येला ने अपना स्थान ग्रहण किया, आँखें बंद कर प्रार्थना आरंभ की। “शांताकारम भुजग शयनम पद्मनाभम सुरेशम । विषवाधारम गगन सदृशम