चैप्टर 5 – जुर्म की गंधरात का अँधेरा गहराता जा रहा था।बारिश थम चुकी थी, लेकिन शहर की सड़कों पर अब भी नमी और सन्नाटा पसरा हुआ था।उस रात बिज़नेसमैन संजय मेहरा की चीख़ पूरे मोहल्ले ने सुनी।लोग भागकर उसके बंगले के बाहर पहुँचे।दरवाज़ा खुला और अंदर का मंजर किसी डरावने सपने जैसा था—फर्श पर खून की लकीरें, और संजय मेहरा की लाश, उसके सीने में चाकू धंसा हुआ।पुलिस पहुँची। जाँच शुरू हुई।लेकिन हैरानी की बात ये थी कि कत्ल की रात किसी ने अरुण को उसी इलाके में घूमते हुए देखा था।किसी ने कहा—“हाँ, मैंने उसे गली के मोड़