बूढ़ी काकी

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‘बूढ़ी काकी’ मानवीय भावना से ओत-प्रोत की कहानी है। इसमें उस समस्या को उठाया गया है जिसमें परिवार के बाक़ी लोग घर के बुज़ुर्गों से धन-दौलत लेने के लिए उनकी उपेक्षा करने लगते हैं। इतना ही नहीं उनका तिरस्कार किया जाता है। उनका अपमान किया जाता है और उन्हें खाना भी नहीं दिया जाता है। इसमें भारतीय मध्यवर्गीय परिवारों में होने वाली इस व्यवहार का वीभत्स चित्र उकेरा गया है।बुढ़ापा अक्सर बचपन का दौर-ए-सानी हुआ करता है। बूढ़ी काकी में ज़ायक़ा के सिवा कोई हिस बाक़ी न थी और न अपनी शिकायतों की तरफ़ मुख़ातिब करने का, रोने के सिवा