दो मन गेहूँ जितना ब्याज

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कच्ची मिट्टी की दीवारों, बाँस की टाटी और खपरैल की छत के नीचे एक छोटा सा घर था। बरसात की रातों में जब पानी की बूँदें छत पर गिरती थीं, तो लगता था जैसे थकान खुद आकर बैठ गई हो | उस घर के सामने एक पतली, संकरी पगडंडी थी, जो कहीं दूर नहीं जाती थी - - बस हर दिन खेतों की ओर लौट आती थी |उसी रास्ते पर किशोर हर सुबह निकलता था — एक किसान। नहीं... दरअसल, वो एक पूरा भूगोल था। उसके पास कुल मिलाकर तीस डिसमिल ज़मीन थी और पाँच ज़िंदगियाँ, जिन्हें वह रोटी, छांव