अदृश्य जालवैशाली रोज़ की तरह पार्क में आकर बैठ गई। हालांकि गर्मी बहुत थी पर घर के सूनेपन से बचने का एक अच्छा तरीका था कि वह पार्क में आकर बैठ जाए।पार्क में बहुत लोग नहीं थे। सूरज डूबने के बाद भी इन गर्मी के दिनों में लोगों की हिम्मत घर से निकलने की नहीं होती थी। भले ही धूप ना हो पर दिनभर में सूरज सबकुछ इतना तपा देता था कि उसके जाने के बाद भी उसकी उपस्थिति का एहसास होता था।कुछ देर वैशाली पार्क में चक्कर लगाती रही फिर आकर बेंच पर बैठ गई। अचानक उसकी आँखें भर