आधुनिक अर्जुन और श्रीकृष्णमंदिर का प्रांगण शांत था। धूप की हल्की किरणें बेलों और पत्थरों पर पड़ रही थीं। हर जगह एक अजीब सी सन्नाटा था, जिसे सिर्फ पंछियों की चहचहाहट और दूर से किसी झरने की हल्की कल-कल की आवाज़ ही तोड़ती थी। उसी प्रांगण में एक युवक हाथ जोड़े खड़ा था। उसकी आँखों में उलझन थी, और उसकी साँसें कुछ भारी और अस्थिर। जीवन के सवालों का बोझ उसके कंधों पर साफ़ दिखाई दे रहा था।युवक ने धीरे से अपने मन में कहा,“हे प्रभु! ये जीवन भी एक युद्ध सा है। हर दिन चुनौतियाँ हैं, संघर्ष हैं… पर