मेरे प्रिय साथियों स्नेहिल नमस्कार कई मित्रों को लगता है कि यदि वे सामने वालों के अपमानजनक व्यवहार का उत्तर उससे भी अधिक धाँसू ज़ोरदार व्यवहार में नहीं लौटाएंगे तो वे सामने वाले के सामने बौने हो जाएंगे। ऐसा क्यों भला? क्या हम इतने कमज़ोर हैं कि किसे के अपशब्दों से टुकड़े टुकड़े हो जाएंगे? कई बार तो मैंने यहाँ तक सुन लिया कि रीढ की हड्डी ही नहीं है। सच कहूँ मित्रों तो मुझे उनकी बात पर क्रोध नहीं, हँसी आई और मैं वहाँ से हट गई? क्या हमारे पास इतना समय और ऊर्जा होती है कि हम तीरों