मैं अधूरा जी रहा हूं......

मैं अधूरा जी रहा हूं…“तेरे बिना साँसें तो हैं, पर ज़िंदगी नहीं…”कमरे की खामोशी अब मेरी साथी बन चुकी है।ये चार दीवारें हर रोज़ मेरी तन्हाई का मज़ाक उड़ाती हैं।अलार्म बजता है, मोबाइल काँपता है,पर उठने की हिम्मत नहीं होती।चाय का कप हाथ में आता है,भाप उठती है… पर स्वाद कहीं खो जाता है।सब कुछ वैसा ही है…सिर्फ़ मेरा दिल नहीं।> “तेरे बिना सुबह भी सुबकती है,दिन ढलता है, पर ढलती नहीं उदासी…”मैं लोगों के बीच रहता हूँ,पर अपनी ही दुनिया में गुम हूँ।किसी की हँसी मेरे कानों तक पहुँचती है,पर दिल तक नहीं उतरती।किसी की बातें सुनता हूँ,पर दिमाग़