सत्य की लीला और मानव की माया

सत्य की लीला और मानव की माया प्रस्तावना मनुष्य सत्य की ओर बढ़ता है, लेकिन सत्य के द्वार पर पहुँचते ही उसका अहंकार काँप उठता है। क्योंकि सत्य का अनुभव अहंकार को मिटा देता है। यही भय खोजी को बीच राह में रोक देता है, और वह माया की ओर लौट जाता है। सत्य से ही लीला प्रकट होती है, पर मनुष्य लीला में जीने का साहस नहीं करता। वह माया को गाली देता है, लेकिन भीतर से उसी में रस भी लेता है। यही दोहरी स्थिति मनुष्य की सबसे गहरी उलझन है।मूल कारण तक जाते ही सत्य बिल्कुल स्पष्ट