सत्य का बलिदान

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सुरजनगर एक पुराना, शांत और रंग-बिरंगा शहर था। यहाँ की गलियों में बचपन से ही दोस्तियाँ पनपती थीं। मंदिर की घंटियों और मस्जिद की अज़ान की आवाज़ें एक-दूसरे में घुल-मिल जाती थीं। मोहल्ले की गलियों में बच्चे गिल्ली-डंडा खेलते, बुज़ुर्ग चौपाल पर बैठकर चर्चा करते और औरतें अपने-अपने घरों के आँगन में पापड़ सुखातीं।इसी शहर के बीचों-बीच एक छोटी-सी दर्जी की दुकान थी। दुकान का मालिक था रामकुमार शर्मा। उम्र करीब 45 साल, चेहरे पर हल्की झुर्रियाँ, लेकिन आँखों में सच्चाई की चमक। उसका पहनावा साधारण था – साधे हुए कपड़े और सिर पर हमेशा सफेद गमछा। मशीन की टक-टक